“सांसारिक कार्य” में लगे व्यक्ति को
“अधिक” मंत्र जप और स्तोत्र नहीं पढ़ने चाहिए.
उनकी “ताकत” को वो “झेल” नहीं सकेगा.
विशेष :
ब्रह्मचर्य के बिना तो मंत्र और स्तोत्र की “ताकत” को
“पचा” पाना” “सोच” से बाहर है.
(जिन्हें “अंदर” से “सांसारिक सुख” – इसमें “रोग से मुक्ति” भी शामिल है,
परन्तु बाहर से कहते हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए,
वो लोग तो “ज्यादा मंत्र और स्तोत्र” पढ़ने के बाद
बहुत जल्दी “बिमारी की चपेट” में आ जाते हैं.
-ऐसे cases में उनकी डॉक्टरी रिपोर्ट “NIL” आती है
फिर “किसी” को बुला कर पूछते हैं कि ऐसा क्यों है?
यदि उन्हें कहा जाए कि “अपना” जाप कम कर दो
तो वो इसे स्वीकार नहीं करते.
बहुत ज्यादा मंत्र-साधना करने वालों को
बहुत ज्यादा “अशक्त” भी देखा गया है.
निवारण:
रोज के बस तीन-चार या ज्यादा से ज्यादा पांच स्तोत्र पढ़े.
वो भी हर स्तोत्र दिन में सिर्फ एक बार.
नवकार की भी माला ज्यादा से ज्यादा रोज की दो ही फेरें.
“राज्य” और “अकाल” जैसी समस्या का निवारण जब “मंत्र” से हो जाता है,
वो “हमारी” समस्याएं तो उसके आगे क्या चीज हैं !
नोट :
जिन्हें “संसार” से मुक्ति चाहिए, वो “नवकार” का स्मरण हर समय कर सकते हैं.
पर फिर ये ना कहें कि दिन भर नवकार जपता हूँ फिर भी “धंधा” नहीं चलता.
“नवकार” तो “भव-मुक्ति” की और ले जा रहा है और आप वापस “बैक” मारना चाहते हो !