कभी हम बात करते हैं “अच्छा जीवन” जीने की जो “पैसे” के बिना संभव नहीं है.
सही बात है.
फिर हम और पैसा कमाने की सोचते हैं जबकि अपना मकान, ऑफिस और गाडी आने के बाद और कोई भौतिक सुख बाकी नहीं रह जाता.
पर हम “अंधी दौड़” में “शामिल” हो जाते हैं और रूक नहीं पाते.
इसीलिए वर्तमान में “सब कुछ” होने के बावजूद भी 70 साल का व्यक्ति भी “धंधे” की बात करता है. “आराम” की बात सोच नहीं पाता. जबकि एक “सरकारी नौकर” को सरकार भी 60 वर्ष में रिटायर कर देती है.
प्रश्न:
क्या रिटायरमेंट के बाद “आराम” ही करना चाहिए?
उत्तर:
नहीं, खुद को “समाज” के लिए “उपयोगी” बनाना चाहिए.
प्रश्न:
पर पैसे के बिना पूछता कौन है?
उत्तर:
बिना काम शुरू किये “रिजल्ट” की बात करना बेमानी है.
यदि जीवन में कुछ प्रतिष्ठा हासिल की है, तो लोग आगे बढ़कर पैसा लगाने को तैयार हैं यदि सही आदमी काम करने को तैयार हो.
पर इससे पहले “आध्यात्मिक शक्तियों” का विकास करना चाहिए – खुद के कल्याण के लिए.
फिर समाज सेवा में उतरना चाहिए.
“आध्यात्मिक शक्तियां” के प्रभाव को “शब्दों” में नहीं कहा जा सकता.
हर जैन सूत्र को इस प्रकार बोलें मानो हमारा जीवन लक्ष्य वही बन गया हो और हम अपने को धन्य समझ रहे हों.
जैसे यदि नवकार का जाप कर रहे हैं तो मन में ये भावना रहे कि “नवकार” जैसे महामंत्र का जाप मैं कर सकता हूँ, मैं…! इतने प्रभावशाली सूत्र को पढ़ने वाला भी तो प्रभावशाली ही हुआ ना!
अबसे नवकार गुणे, तो ऐसा “फील” करें.
जीवन के सारे विरोधाभास जल्दी ही समाप्त हो जाएंगे.
कई जनों का प्रश्न रहता है की मैं “नवकार मंत्र” को सिद्ध करना चाहता हूँ.
भला जो मंत्र “अनंत काल” से “सिद्ध” है, उसे तुम और क्या “सिद्ध” करोगे?
कहने का मतलब है, इसे सिद्ध करने की बात सोचना ही गलत है.
ये तो वैसी बात हुई कि कोई कहे कि मैं एक भले आदमी को भला आदमी सिद्ध करना चाहता हूँ.
(वो तो पहले से ही भला है ही).
(नवकार के प्रभाव को और जानने के लिए jainmantras.com की अन्य पोस्ट भी पढ़ें).