परम आराध्य श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान
जिनके दर्शन मात्र से “शनि” का दुष्प्रकोप भस्म हो जाता है.
द्वारिका नगरी का नाश हुआ तो यादवों द्वारा श्री मुनिसुव्रत स्वामी का स्तूप हटाने के कारण !
हटाया इसलिए क्योंकि शाम्ब और प्रदुम्न की नेतागीरी में शराब के नशे में सभी अपना भान भूल गए.
फिर इन्हीं शाम्ब और प्रदुम्न ने शत्रुंजय जाकर आराधना की, और मोक्ष गए.
शारांश :
ये मानव जन्म “रोकड़ा” जीवन है. जो खोटे कर्म किये, उनका मात्र रोना मत रोवो,
बस आज से ही अच्छे कर्म करना शुरू कर दो.
फिर “मुक्ति” निश्चित है.