“मौन” रहने की महत्ता हमने अभी तक समझी नहीं है.
बहुत से प्रश्न मन में खड़े होते हैं परन्तु “मौन” रखने से उन पर चिंतन किया जाता है.
रिजल्ट: उत्तर अपने आप मिलते हैं.
विशेष: सभी के लिए सभी प्रश्नों के उत्तर एक समान नहीं होते.
मन में एक विचार आता है:
मैं कौन होता हूँ प्रश्न करने वाला,
फिर तुरंत दूसरा विचार आता है:
“जीवन” के “सही उत्तर” ढूंढने के लिए
“कुछ प्रश्न” तो करने ही होंगे.
अब आगे पढ़ें:
प्रश्न:
मेरी उम्र अब कितनी रही,
क्या कभी इस बात पर चिंतन किया है ?
(मेरी नहीं, आपकी) 🙂
कृपया उत्तर दें.
प्रश्न:
वर्षों से “गुरु” का सान्निध्य प्राप्त होने पर
अब तक आपको क्या “प्राप्त” हो पाया है?
कृपया उत्तर दें.
प्रश्न:
व्यक्ति “शब्द” की “गहराई” में कब जाता है ?
कृपया उत्तर दें.
प्रश्न:
आज तक जो कर्म किये हैं,
क्या वो “दूसरे” के लिए अपनाने लायक हैं?
(हिंट: मानो “वही” कर्म दूसरे ने किये हैं तो आप उसे कैसा समझेंगे).
प्रश्न:
अपना “जीवन”
“एक” से
“शुरू” होता है
या
“शून्य” से?
कृपया उत्तर दें
प्रश्न:
“धर्म का मार्ग” क्या है?
क्या हम उसी “मार्ग” पर चल पा रहे हैं?
उत्तर मात्र एक लाइन में आना चाहिए.
प्रश्न:
“अपने लिए” सबसे महत्त्वपूर्ण बात कौनसी है?
“उस पर” आज तक कितना समय दिया है?
(बहुत चिंतन करके उत्तर लिखें-
इसका उत्तर दिए बिना आपका जीवन व्यर्थ है –
यदि महत्त्वपूर्ण बात ही अभी तक पता ना हो)
प्रश्न:
मृत्यु होने पर
“आत्मा” मुक्त होती है
या “शरीर?”
(काफी “ध्यान” लगा कर उत्तर देवें – उत्तर गलत होने की पूरी सम्भावना है )
अपनी उन्नति के लिए क्या अपने बारे में “प्रश्न” करना जरूरी है?
(उत्तर कौन देगा)?