जब “नवकार” जैसा महामंत्र जैनों के पास हैं
तो फिर हमारे ही गणधरों ने हजारों जैन मंत्रो की रचना क्यों की?

उत्तर:

क्योंकि जो महामंत्र “भव -निवारण”
यानि जन्म-मरण से मुक्ति दिलाता है,
पुण्य को प्रकाशित करता है,
सब पापों का नाश करता है,
उसका प्रयोग क्या हमारी “छुट -पुट” समस्याओं के
निवारण के लिए किया जाना चाहिए?

“जन्म -मरण” से मुक्ति से बढ़कर इस संसार में

और कोई बात उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं हैं.

हर मंत्र का “अपना” प्रभाव होता है.

हर व्यक्ति को हरेक मंत्र एक सा प्रभावी नहीं होता.

“मंत्र” की जरूरत क्यों  है, इसका गहराई से विचार करना चाहिए.

 

जैसे :

१. धंधे में धन की कम कमाई होना अलग बात है और कमाया हुआ पैसा डूबना अलग बात है.
२. धंधे में आकस्मिक रुकावट  अलग बात है और परमानेंट अलग बात है.
३. धंधे में कमाई अच्छी हो रही है पर पार्टनर के साथ मतभेद हैं.
४. धंधे एक सा है पर ग्रोथ नहीं है.
५. अभी धंधा अच्छा चल रहा है, पर भविष्य का कहा नहीं जा सकता.(दूसरों का हाल देखकर)
६. धंधा अच्छा है पर धंधे में से पैसा नहीं निकल पा रहा (रियल एस्टेट के धंधे वाले)
७. धंधा अच्छा है पर रिस्क बहुत ज्यादा है.

ऊपर लिखी अलग अलग समस्याओं के लिए अलग अलग मंत्र का प्रयोग होता है.
यदि समस्याएँ बहुत ज्यादा हैं, तो प्रभावशाली मंत्र का जप तो करना ही होगा,
साथ में तप, दान और साधू-साध्वी की सेवा (वैयावच्च) साथ में करनी होती है.

 

और जानकारी के लिए अच्छी तरह (हर पोस्ट को २-३ बार) पढ़ते रहें :

jainmantras.com
फोटो:
ब्राह्मी लिपि में नवकार मंत्र
(अर्ध पद्मासन में तीर्थंकर सहित)

नोट:

भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को
ब्राह्मी लिपि सर्वप्रथम सिखाई थी.

error: Content is protected !!