याद करें अपने बचपन की घटनाओं को.
बचपन में किसी से झगड़ा हुआ हो तो उसे याद करने पर आज हंसी आती है.
बचपन के दोस्त सबसे गहरे दोस्त होते हैं.
जिनसे झगड़ा हुआ हो, वो भी दोस्त बन जाते हैं आगे जाकर.
बचपन में या तो खुद ने कुछ ठानी होगी “बनने” की
या माता-पिता ने जो कहा होगा, वो “बने” होंगे.
पर क्या संतुष्टि मिल गयी है वो “बनकर?”
वास्तव में मनुष्य जीवन सबसे “रहस्यमयी” है.
कौन कब कैसा व्यवहार करता है, “समझ” नहीं सकते भले ही कितना भी समझने की कोशिश क्यों ना करें.
मनुष्य खुद को ही नहीं समझ पाता
प्रश्न:
इन सबका जैन धर्म से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
मनुष्य जो हासिल करना चाहता है – वो हासिल होने के बाद उसी में और प्रगति करना चाहता है.
बिज़नेस करने वाला और बड़ा बिज़नेस करना चाहता है.
पर उस पैसे का “सदुपयोग” करना कइयों को नहीं आता.
यानि की “जीने” का तरीका उसे नहीं आता.
खुद ही “सुख” से रहना नहीं चाहता.
जिसके पास पांच करोड़ है, वो भी भागता है, खबर नहीं क्यों भागता है.
रात को महाशय दस बजे घर पधारते हैं.
कहने का अर्थ है : भौतिक सुविधाओं में एक मकान, ऑफिस और गाडी होने के बाद जो है, वो सब “एक्स्ट्रा” है.
(यदि कोई कहे कि “जीवन” में प्रगति होनी ही चाहिए, तो बात सही है. परन्तु “जीवन” का मतलब ज्यादा से ज्यादा भौतिक सुविधाओं का होना नहीं है. “भौतिक सुविधाओं” से “जीवन” “आरामदायक” हो सकता है, परन्तु “जीवन” में उससे “उन्नति” हो जाती है, ये बहुत बड़ा भ्रम है.
“jainmantras.com” का सूत्र है : “जीवन के अनमोल रत्न”
एक प्रश्न आपके लिए: (उत्तर लिख पर अपने पास रख लें और वो समय बीतने पर मिलान करें कि क्या आपने वही हासिल कर लिया है)?
मानो कि पंद्रह साल बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
(The same may be termed VISION STATEMENT in CAREER BUILDING).
मानो कि पांच साल बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि एक साल बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि एक महीने बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि पांच दिन बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि एक दिन बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि एक घंटे बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है, आप क्या करना चाहोगे?
मानो कि “अभी पांच मिनट के बाद आपको ये संसार छोड़ कर जाना है,
आप क्या करना चाहोगे?”
यदि इन प्रश्नों पर “चिंतन” करें, तो आपको लगेगा कि “मैं अपने जीवन में ” रोज” बहुत से कार्य “फालतू” करता हूँ.”
और
यदि ऊपर लिखे ये प्रश्न आपको फालतू लगें, तो jainmantras.com पढ़ना “बंद” कर दें.
“अनुभव” या “कल्पना” करो कि अपने जीवन के अंतिम समय में आप ये गाना सुन रहे हैं:
“मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रहा गया”
https://www.youtube.com/watch?v=81v-RHKZbiw
(जीवन में प्राप्त करने योग्य कहीं से भी किया जा सकता है फिर वो “फिल्म” ही क्यों ना हो).
jainmantras.com: “खुद” पर ही जब “करुणा” बरसे, तभी “आत्म-ज्ञान” हो पाता है.