कई जन कहते हैं कि मैं तो इतने वर्षों से नवकार की माला फेर रहा हूँ पर कुछ फर्क नज़र नहीं आता.
वास्तविकता कुछ और ही होती है.
कई लोगों से पूछा : चलो बताओ, आप को क्या तकलीफ है?
तब उत्तर मिलता है : तकलीफ तो कुछ नहीं है, पर “सब कुछ” नहीं मिला!
फिर प्रश्न किया: आप क्या चाहते हो?
उत्तर: धंधा बढे!
प्रश्न : हर साल बिक्री तो बढ़ी ही होगी!
उत्तर : हाँ, उस हिसाब से नफा नहीं बढ़ा.
प्रश्न: नवकार की माला बड़े उत्साह से फेरते हो या रूटीन पूरा करने के लिए?
उत्तर: “(बस अभी अभी ही मौन व्रत धारण किया है).” 🙂
प्रश्न: चलो नवकार पर कुछ चर्चा करते हैं. “सव्वपावप्पणासणो” का क्या अर्थ है?
उत्तर: (मौन व्रत तोड़ते हुवे) नवकार सारे पापों का नाश करता है.
प्रश्न: “सारे पाप” करता कौन है?
उत्तर : “(बस अभी अभी वापस मौन व्रत धारण किया है).” 🙂
प्रश्न: चलो, धंधे पर कुछ चर्चा करते हैं.
उत्तर: (तुरंत) कहो, कहाँ से शुरू करें?
(अब उत्तर देना वाला प्रश्न पूछने लगा) 🙂
प्रश्न: आपने कहा – धंधा तो बढ़ा पर नफा नहीं बढ़ा. “धंधा” किसके कारण बढ़ा.
उत्तर: वो तो मैंने “लोन” लिया था, इसलिए बढ़ा.
प्रश्न: मतलब “धंधा” बढ़ाने में “नवकार” को कोई रोल नहीं है?
उत्तर: (मुझे बार बार मौन व्रत क्यों दिलाते हो)? 🙁
खुलासा : आपने कहा कि “धंधा” बढे, तो धंधा तो बढ़ा ही है!
आप तो और ज्यादा “धंधा” भी बढ़ाने को तैयार हो पर धंधा ज्यादा बढ़ाने के लिए तो नवकार भी ज्यादा गुणने होंगे, धंधा और बढ़ेगा तो फिर नवकार ज्यादा गुणने का “समय” कहाँ से मिलेगा?
“उत्तर” देने वाले का “प्रश्न”: आप सीधा सीधा कहो कि इसका क्या मतलब है? मैं धंधा नहीं बढ़ाऊ?
प्रश्न करने वाले का उत्तर : “धंधा” बढ़ाने का सारा “श्रेय” तो आप ले रहें हैं, फिर नवकार का प्रभाव ही कहाँ है?
इसलिए “नवकार” गुणना छोड़ दें!
उत्तर देने वाले का उत्तर : मैं नवकार कैसे छोड़ सकता हूँ? मेरा “जो” है, वो नवकार के कारण ही तो है!
पाठक देखें कि “लोग” किस प्रकार भ्रम में जीते हैं. “लाइन” पर लाने के लिए उन्हें और उलझाना पड़ता है,
तो सीधे तरीके से बात करते हैं.