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जैन धर्म और पुरुषार्थ

पुरुषार्थ का संधि विच्छेद है : पुरुष + अर्थ

पुरुष वो है जो “निर्भीक” हो.
निर्भीकता जब आती है जब वो “बलशाली” हो.
वो डरे तो सिर्फ “पाप” से!
“पापी” कितनी भी मेहनत क्यों ना करे,
उसे “पुरुषार्थी” नहीं कहा जा सकता.
एक “गुंडा” दिन भर “गुंडागर्दी” करे,
और रात का  “बादशाह” हो,
तो भी ये नहीं कहा  जा सकता कि
वो खूब “मेहनत” कर रहा है.

 

आज “आम आदमी” “पुरुष” ही नहीं है.
दिन भर “गधा मजूरी” करके कोई “पुरुषार्थ” थोड़े ही करता है!

वर्तमान में हमारी दिनचर्या ही पूरी विपरीत है –
हमारी ही “बॉडी” के “खिलाफ” हम कार्य करते हैं.
“सवेरे” उठते ही नहीं !
पहले सवेरेचार बजे” उठने वाली हिन्दुस्तानी प्रजा
आजकल शाम को चार बजे  “लंच” लेती है.

 

जब व्यक्ति “समय” पर उठे ही नहीं, तो हानि किसको होगी?
मात्र “खुद” को नहीं, उन सभी लोगों को जो उससे जुड़े हुवे हैं!

लाइफ पूरी बैलेंस्ड हो, यही जीवन मंत्र है.
सवेरे ब्रह्ममुहूर्त्त में वो “स्वाध्याय” ((सामायिक))  करे,
फिर “शारीरिक कसरत” करे,
“दूध, बादाम इत्यादि से नाश्ता करे”
(पूरे परिवार में बाहर जो खाने पीने का जो खर्च है,
उससे ये बहुत “सस्ता” है).
शरीर को निरोग रखने के लिए “दूध” जरूरी है या “कोल्ड ड्रिंक?”
“कोल्ड ड्रिंक” हो तो “शरबत” और वो भी दोपहर को.

 

“जीवन” चलाने के लिए (कमाने के लिए) रोज के 6 से 8 घंटे पर्याप्त हैं.
मेरे “प्रोफेशनल गुरु” श्री सत्यप्रकाश गुप्ता ने एक ही बात बताई :

“बेटा देख! अच्छी जिंदगी जीना है तो एक ही सूत्र गाँठ बाँध ले:
आठ घंटों में खाना-पीना और सोना.
आठ घंटे कमाने के लिए कार्य करना
आठ घंटे – सामाजिक मेल मिलाप. ”

बीकानेर महाराजा  के वो टैक्स कंसलटेंट थे.
धाक इतनी कि “इंदिरा गांधी” तक पहुँच.
बीकानेर रहते हुवे!

 

ये “धाक” कहाँ से आई?
लोगों से जान पहचान के कारण!

उनके क्लाइंट्स थे कुल में चार!
फिर भी 1981 में ऊटी में bunglow था बीस लाख रुपये का!
60 साल की उम्र में प्रैक्टिस छोड़ कर बेच दी.
जीवन भर “रॉयल्टी” लेते रहे.
कारण?
“धाक” जो थी!

एक जैन श्रावक भी यही सब करता है.
यदि नहीं करता हो तो करना शुरू कर दे.

 

शंका:
पर इतने कम समय में तो काम ही पूरा नहीं होगा.
उत्तर:
बड़े बड़े सेठ सारा काम कोई खुद नहीं करते.
मैनेजमेंट में “costbenefitanalysis”  की बात आती है.
आजकल के सेठ तो सेठ ही नहीं है विशेषकर जैन, जो धंधा करते हैं.

कुछ प्रैक्टिकल टिप्स:
१. हमारे एक आदमी ने दिन भर में क्या काम किया, उसके लिए क्या दिन भर उसके सर पर बैठे रहना पड़ेगा?
२. हमारा आज कितना माल बिका या खरीद होकर आया, क्या उसके लिए दिन भर बैठे रहना होगा?
नहींना!

 

बिज़नेस है : Information Gap!
नफा वो है: जहाँ “दूसरे” को पता नहीं कि वस्तु की  real cost  क्या है?
जिस दिन वो “cost” सभी को पता पड़े, तो धंधे में मार्जिन कम हो जाएगा.

“पुरुषार्थी” वो है जो हर समय “चौकन्ना” रहे, पर साथ में  “धीरजवान” भी हो.
“चौकन्ना” रहने वाला “आलसी” नहीं होता.
“धीरजवान” गलत निर्णय नहीं लेता.

ये “गुण” रोज सामायिक करने वाले में प्रकट हो जाते हैं.
साथ ही “पुण्य” भी “प्रकट” होता है.

 

हमारा कितना पुण्य है, वो हमें ही कहाँ मालूम है?
इसीलिए हम “दिन भर” दौड़ कर भी कहाँ कोई “खजाना” पैदा कर रहे हैं?

प्रश्न: कहना क्या चाहते हो?
उत्तर: जैन धर्म कहंता है कि सुख-दुःख के पीछे “कर्म” ही सारा कारण है.
मतलब पूर्व जन्म में या इस जन्म में जो कर्म किये हैं,  वही “प्रकट” हो रहे हैं.
कुछ नए कर्म इस जन्म में भी रोज कर ही रहे हैं, इसीलिए तो “उपार्जन” (income) भी कर रहे हैं.
जैसे घर में खाना “पकाते” हैं, तो “खा” पाते हैं.
मतलब ये “संचित” पुण्य नहीं है, “अर्जित” पुण्य है.

 

“पुरुषार्थ” “पुण्य” को प्रकट करता है.
“धर्म” की रक्षा लिए राम भी लड़े और पांडव भी.
हज़ारों दुष्टों का वध किया, फिर भी “मोक्षगामी” बने.

इसलिए तो “राम” मर्यादा “पुरुषोत्तम” कहलाते हैं.

आज हम जैनी किस स्थिति में हैं?
मात्र पैसे के पीछे दौड़ने वाले!
जैनी होते हुवे भी “जैन धर्म” में कही बातों  को ना अपनाने वाले!
रात्रि भोजन करने वाले, आलू-प्याज खाने वाले, होटल्स जाने वाले!
जानते हुवे भी वो करना यह कह कर कि “आज” ये सब “छोड़ना” संभव नहीं है.

 

हम “आधुनिक पुरुषार्थ” कर रहे हैं!

एक जैनी का “सच्चापुरुषार्थ” वो है, जब वह आत्मकल्याण की सोचता है – खुद का भी और दूसरों का भी. क्योंकि जन्म-जन्मान्तर में भी अभी तक “प्रकट” नहीं हो पाया.  अपने और दूसरों का आत्म कल्याण सोचने वाला अत्यंत पुण्य उपार्जित करता हैं : अभी से ही! ये cash benefit है.

बाकी अब “जैनों” को सोचना है कि :
१. वो हर जगह जैन स्कूल और कॉलेज बनवाए.
२. बच्चों को compulsory ट्यूशन क्लास भेजते हों, तो “धर्मस्थान” पर भी भेजें.
३. “खुद” रोज कुछ “धार्मिक क्रिया” करने के साथ” “शूरवीरता” के कार्य भी करें. “जिम” जाएँ. पौष्टिक खाना लें. खुद को तरोताजा रखें.
४. “एकता” रखें. अच्छे लीडर्स “चुनें,” अच्छे लीडर्स की टांग खींचकर समाज को “चूना” ना लगाएं.
५. हर स्थान पर “जाग्रति” रखें. इससे एक दिन “आत्मज्ञान” भी प्रकट होगा. यही “पुरुषार्थ” की सार्थकता है.

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