किसी के सुख की बातें “सुननी”
ज्यादा “अच्छी” लगती हैं या दुःख की ?
जरा चेक करो:
किसी के “सुख” की बातें तो ज्यादातर लोग
“दो मिनट” भी नहीं सुन पाते.
1.”प-र-म” को प्राप्त करने के लिए :
“पर” को छोडो और
“स्व” में “रम” जाओ.
2.अंतर्दृष्टि :
“सृष्टि” खुद में ही समायी हुई है.
3.मौन साधना
एक घंटे मौन की साधना करो
फिर भरे बाज़ार में जाओ.
तब एहसास होगा कि
सारी दुनिया “भाग” रही है
परन्तु अपने लिए
“समय” का कुछ “भाग”
भी नहीं निकालती.
मेरा उद्धार कब होगा
– इस प्रश्न के स्थान पर इसका चिंतन करें :
क्या मेरे उद्धार की शुरुआत हो चुकी है?
4.”श्वास की डोर”
क्या हमारे पास “बहुत” समय है?
याद रहे:
“श्वास की डोर” छूटने में “समय” नहीं लगता.
5.”धर्म” दूरदर्शी होता है.
“भविष्य” में कल्याण की बात करता है.
“कल्याण” शब्द
“सुख” शब्द से ज्यादा विस्तृत है.
जिसने “धर्म” को अपना लिया है,
वह कईयों के कल्याण में उपयोगी बनता है.
6.”आत्म-तत्त्व”
जिस दिन “आत्म-तत्त्व” को स्पर्श कर लिया
समझो “भव-भव” के अंत की शुरुआत कर ली.
7.”केंद्र बिंदु”
हमारे “जीवन” का
“केंद्र बिंदु” (सेंट्रल पॉइंट)
क्या है, और
उस बिंदु से हम कितने दूर जाते हैं,
इसका चिंतन रोज करो.
8.”अनुभव”
“अनुभव” की बात चित्त में “सीधी” उतरती है.
पढ़ी, लिखी या सुनी हुई बात का इतना असर नहीं होता.
“अपने लिए” जो “समय” निकालता है
उसे ही “महा पुण्यवान” समझना.
9.अदभुत बात !
जो भी लोग “सुख” चाहते हैं,
इसका मतलब ही
वो अभी सुखी “नहीं” हैं.
10.जरा चेक करो:
आज दिन में आपने कितने काम किये
और कितने बाकी रहे.
ये भी “चेतना” का ही लक्षण है.
11.”ईश्वर” की प्राप्ति
उठते बैठते यदि “प्रभु” का स्मरण
जब स्वत: ही होने लगे
तो समझ लेना कि
“ईश्वर” की प्राप्ति हो गयी है.