हमारे “मन” पर किसका अधिकार है?
कभी इस विषय पर चिंतन किया है?
हमारे विचारों पर
१. माता-पिता के संस्कार,
२. गुरुओं की निश्रा,
३. आधुनिक शिक्षा,
४. प्रचलित जीवन शैली,
५.मित्रों की सांगत और
६.जीवन साथी व
७. बच्चों के व्यवहार का प्रभाव पड़ता है.
दिन भर में हम बहुत कम समय के लिए
अपने “मन” के बारे में सोच पाते हैं.
ध्यान रहे :
मन अलग है
विचार अलग है
बुद्धि अलग है.
ज्यादातर कार्य हमारे “विचारों” के अनुकूल नहीं होते.
फिर भी हमें करने पड़ते हैं.
इससे आजकल के “संत” भी बाकी नहीं हैं.
जैसा उनको घेरे हुवे “श्रावक” चाहते हैं,
वैसा उन्हें करना पड़ता है.
मतलब वो भी “मुक्त” नहीं हैं अपने
“मन” की बात “करने” के लिए;
यद्यपि “मुक्ति” की बात करते हैं.
जिस समय हमारा अपने मन पर “अधिकार” हो जाता है,
“मुक्ति” बहुत पास होती है.
परन्तु कई बार तो ये “हठ योग” में बदल जाता है.
निष्कर्ष:
गृहस्थ धर्म भी सरल नहीं है,
बात भले ही “वैरागी जीवन” के कठिन होने की कही जाए.