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मेरा चिंतन

जीव और जीवन
सामान्य रूप से जन्म और मृत्यु के बीच के काल को
“जीवन” कहा जाता है
“मृत्यु” जीवन का “अंतिम” सत्य कहा जाता है.

 

तो फिर “प्रथम” सत्य क्या है?
“जन्म” लेना?

जन्म तो एक पशु भी लेता है और एक मानव भी.
पशु जिन्दा रहते हुवे “पशु” से आगे नहीं बढ़ सकता.
ज्यादातर मनुष्यों का भी यही “हाल” है.
“जीव” का “प्रथम” और “अंतिम” सत्य “जन्म और मरण नहीं है.

 

“जीव” का प्रथम और अंतिम सत्य “मोक्ष” है.

जो इसे जानने का प्रयत्न करता है,
उस दिशा में आगे बढ़ता है,
वही जीवन जीता है.

जो ये नहीं करते
वो सब स्वयं को “मूर्ख” बनाते हुवे
“बुद्धिमान” होने का “ढोंग” करते हैं.

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