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नमस्कार और आशीर्वाद – 3

पिछली पोस्ट में हम बात कर रहे थे कि हम “मंदिर” में “भगवान” के दर्शन कर रहे हैं….

हम पहुंचे हुवे हैं : “जैन मंदिर” में.

अब विचार करो:
भगवान को नमस्कार कौन करता है?
हमारे हाथ?
हमारी आँखें?
हमारा मस्तक?
हमारी वाणी?
हमारा “मन”?

 

हमें बार बार ये कहा जाता है कि “नमस्कार” मन, वचन और काया से करने चाहियें.
अब विचार करो : “हम” कौन हैं?
हाथ, आँखें, मस्तक, वाणी और मन सभी “हमारे” हैं!

पर “हम” कौन हैं?
यही सबसे बड़ा प्रश्न है.
बड़ा मुश्किल प्रश्न है.
लोग इस “सबसे अनिवार्य” प्रश्न को छोड़कर जीवन भर बाकी सारे प्रश्नों को  सॉल्व करते हैं.

 

जरा आँखें बंद करके “खुद” को देखो.

पता पड़ेगा कि “खुद” के कोई हाथ,पाँव, आँखें, मस्तक, शरीर के अन्य अंग, वाणी और मन नहीं होते.
ये सब “शरीर” के होते हैं.

शंका: क्या “मन” भी “हमारा” नहीं है?
उत्तर: बात चल रही है कि हम कौन हैं. “मन” हमारा है….इसे वैसा ही समझो जैसे कि “हमारा” पेन.
पर प्रश्न अभी भी खड़ा है:
“मन” “हमारा” है, तो “हम” कौन  हैं?

 

 

हमें तीर्थंकर भगवंत  को “नमस्कार” करने की “जरूरत” क्यों है?
उत्तर:
तीर्थंकर भगवंत भी अपने पूर्व भवों में उत्कृष्ट साधना कर चुके होते हैं.
तीर्थंकर के भव में भी वो साधना करते हैं.
हाँ….कइयों को तीर्थंकर के भव में बहुत कम साधना करनी होती है जैसे कि उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ: दीक्षा लेने के दिन ही उन्हें केवल ज्ञान हो गया था.
इससे ये सिद्ध होता है कि पूर्व भव में कुछ दोष  रह गया था  “श्री मल्लिनाथ” की  साधना में (पिछले भव में अपने साथियों से ज्यादा “तप” करने का  “कपट” उनके मन में आ गया था, क्योंकि स्वयं राजकुमार थे और दूसरे उनके मित्र. इसलिए उनसे अधिक तप करने का भाव मन में प्रकट हुआ. इस कपट के कारण उन्होंने “स्त्री” रूप धारण किया तीर्थंकर के भव में.
(दिगंबर सम्प्रदाय  इसे नहीं मानते).
कहने का तात्पर्य ये है कि एक छोटी सी भूल के कारण वो उसी भव में पूजनीय नहीं हो पाये.

 

परन्तु “जैन धर्म” की विशेषता देखिये:
तप का रिजल्ट मिला :
तीर्थंकर स्वरुप
और
कपट का रिजल्ट मिला:
स्त्री का रूप.

 

निष्कर्ष: हमारे मन का सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव हमें क्या प्राप्त करा सकता है या कहाँ ले जाकर पटक सकता है, इसके बारे में सावधान रहिये.

अति विशेष: स्त्री होते हुवे भी जैन मंदिरों में  “श्री मल्लिनाथ” की प्रतिमा “पुरुष” स्वरुप क्यों होती है, इसका उत्तर पढ़ें: “जैनों की समृद्धि के रहस्य” में जो jainmantras.com  द्वारा  2016 के अंत तक पब्लिश होगी.  

“नमस्कार” की बात चालू है और “आशीर्वाद” की बात बाद में……..

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