सत्यमेव जयते
सत्य “कड़वा” होता है, ये बात “असत्य” है.
ज्यादातर व्यक्ति “सत्य” “सहन” नहीं कर पाते,
इसलिए “मेजोरिटी” यही कहती है कि “सत्य” कड़वा होता है.
(मेजोरिटी के कहने से “असत्य” बात “सत्य” नहीं हो जाती).
“सत्य” उन लोगों के लिए कड़वा होता है
जो “सत्य” को जल्दी से “स्वीकार” (accept) नहीं करना चाहते.
(इस पर चिंतन करेंगे तो पाएंगे की खुद ही झूठी माया में रचे रहना चाहते हैं).
कुदरती तौर पर हर व्यक्ति “सत्य” ही सुनना चाहता है.
जैसे अपने प्रिय जन की मृत्यु की बात सुनना.
भले ही कोई इस बात को घुमाना चाहें,
लेकिन “पीड़ित” व्यक्ति उस समय भी “सत्य” ही सुनना चाहता है.
“सत्य” की जय होती है.
ये सभी जानते हैं.
मानते भी हैं,
फिर सत्य “कड़वा” होता है,
ऐसा क्यों कहते हैं?
“सत्यमेव जयते”
यानि सत्य की जय होती है.
“जय” शब्द की गहराई में उतरेंगे तो कोई विरला ही
“जय” प्राप्त करना पसंद करना चाहेगा.
किसी भी क्षेत्र में “जय” ऐसे ही नहीं मिल जाती.
उसके लिए घोर पराक्रम और पुरुषार्थ (efforts and hard-work) करना होता है.
करना चाहोगे?
(सम्पूर्ण मौन)
जहाँ व्यक्ति को बोलना होता है, वहां वो मौन धारण कर लेता है
और जहाँ मौन धारण करना होता है, वहीँ खूब बोलता है.
ये व्यावहारिक जगत का “सत्य” है.
वास्तव में सत्य क्या है?
जहाँ मौन धारण करना चाहिए, वहां बोलना चाहिए?
(स्वयं ही उत्तर देवें).
चिंतन करें :
“जय”(to win) और “विजय”(winning) में क्या अंतर हैं.
उत्तर ना पता पड़ा हो तो जरा अपने गुरुओं से पूछें.
(इस बहाने ही सही, गुरु के दर्शन तो करेंगे).
हिंट:
“पांडवों” को युद्ध में “जय” मिली थी या “विजय?”
विशेष:
“आत्मा” और “शरीर” दोनों में से “सत्य” क्या है?
“साधना” “शरीर” की होती है या “आत्मा” की?
“सत्य” क्या है – इसका उत्तर क्या “शरीर” अकेला देने में सक्षम है?
“सत्य” को “छुपाने” वाले आपके आस पास रहने वाले कौन हैं – जरा अपनी बुद्धि दौङावो.
“ज्यादातर लोग “सच्चे” हैं या “झूठे”
– उत्तर आने के बाद भी उनसे “मीठा” सम्बन्ध बनाये रखना
– ये सत्य का “नाटक” है या “असत्य” का “नाटक”
उत्तर देना बहुत मुश्किल है : है ना !
(है और ना दोनों का एक साथ प्रयोग, क्या ये आश्चर्यजनक नहीं लगता)?
ऊपर लिखी सारी बातें क्या सत्य हैं?