पुण्य का जोर है या पाप का?

जब घर में बिमारी हो, रिश्तेदारी में शादी के कारण खर्च भी हो, धंधा मंदा हो, बच्चे की पढ़ाई के लिया भी पैसा चाहिए और कर्ज पहले से ही माथे पर हो,  मतलब एक साथ कई “समस्याएं” हों और उसे “घर” के सभी सदस्य “भुगत” रहे हों, तो इसे क्या समझा जाए?
क्या ऐसी स्थिति में कोई “धर्म-क्रिया” कर सकता है?
नहीं!

 

सावधान:
जिस समय व्यक्ति अपनी समस्यायों के कारण “धर्म-क्रिया” भी ना कर सके तो समझ लेना कि “घर” में ही कुछ “विशेष” प्रोब्लेम्स. हैं.
सबसे पहले अपने घर का मंदिर चेक करें.
एक साथ “विभिन्न” धर्म के भगवान और गुरुओं की तस्वीरें हों, तो बड़ी मुश्किलें खड़ी होती हैं.
जैसे चन्द्रप्रभु स्वामी की तस्वीर के साथ शनिदेव या हनुमानजी की तस्वीर.
दादा जिनदत्त सूरी की तस्वीर के साथ कुलदेवी का फोटो या मूर्ति.
नवकार मंत्र की तस्वीर के साथ साइं बाबा का फोटो.

 

पालिताना के आदिनाथ भगवान की फोटो के साथ किसी असमकितधारी भोमियाजी (गली मोहल्ले या अन्य स्थान के जो जैन धर्म के अधिष्ठायक देव नहीं होते) का फोटो.
भगवान (तीर्थंकर) के फोटो के साथ बाबोसा और माजीसा का फोटो.
सबसे आश्चर्यजनक तो तब देखने में आता है कि ऊपर लिखी बातें जानने के बाद खुद जैनी “भगवान” का फोटो मंदिर से हटाने को तैयार होते हैं पर भेरुंजी, बाबोसा या माजीसा  का नहीं!
कारण?
तीर्थंकरों की कितनी महत्ता है – ये पता नहीं है.

 

प्रश्न:
ऐसा क्यों है?
उत्तर:
अपने गुरुओं से पूछो!
शंका:
पर घर के “मंदिर” में भगवान की मूर्ति रखने से “आशातना” होने का “डर” रहता है.
उत्तर:
“रात्रिभोजन” के समय “दहीबड़े” खाने से “बुद्धि” जड़ होने का “भय” रहता है (खुद माँ सरस्वती ने आमराजा प्रतिबोधक श्री बप्पभट्टसुरीजी को ये कहा है -ये पोस्ट  jainmantras.com में प्रकाशित हो चुकी है). अब कहो, “रात” को “दहीबड़े” छोड़ने की तैयारी है?
“आशातना” होने के “भय” से जो एक जैनी के लिए श्रेष्ठ है, क्या वो “उत्तम” कार्य करना छोड़ दें?
अरे! “आशातना” ना हो, इसका ध्यान रखे! इतनी सरल बात है.
परन्तु जब तक “पाप” प्रकाशित रहने वाला हो, तब तक “पुण्य” की बात समझ में नहीं आती.

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